यह तो हम जानते ही हैं कि अमारी ही तरह हमारी आवाज को एक जगह से दूसरी जगह पर जाने के लिए किसी न किसी जरिये यानि माध्यम की जरूरत होती है, जैसे हवा । लेकिन अगर हम आवाज के अलावा किसी चीज जैसे रोशनी की बात करें तो ? तो वैज्ञानिकों का तर्क है कि कोई 'ईथर' नाम का एक काल्पनिक माध्यम है, जिसमें से रोशनी यानि प्रकाश गुजरता है। पर हमें क्या ? हम तो कम्प्यूटर की दुनिया के लोग हैं, बच्चों वाली चीजों से हमें क्या मतलब ?
तो भई इंटरनेट पर उपलब्ध सूचनाओं को एक जगह से दूसरी जगह पर जाने के लिए जो माध्यम चाहिए उसे नाम दिया गया है- www यानि world wide web मुझे पता है कि आप यह जानते हैं, पर याद दिला रहा था, ताकि कुछ अवधारणाओं को हम ठीक से समझ सकें।
तो यह वर्ल्ड वाइड वेब जो है, इसे हम मान लें खुला आकाश, जिससे कोई सूचना जब हम प्राप्त करना चाहते हैं, तो (चाहे जानबूझकर या फिर बिना चाहे, अनजाने में भी) हम उस सूचना को इस आकाश से नीची उतार रहे होते हैं, अपने डिवाइस पर। फिर चाहे वह डिवाइस आपका कम्प्यूटर हो, या फिर आपका स्मार्टफोन, या फिर कोई टैबलेट डिवाइस। इस प्रोसेस को हम Downloading कहते हैं।
इसी तरह कोई भी जानकारी जो हम इंटरनेट पर भेजते हैं, उसे एक प्रकार से हम कहें तो आकाश पर चढा रहे होते हैं, जिसे अपलोडिंग या अपलोड करना कहते हैं।
लेकिन इस आकाश और धरती के बीच एक चीज बादल यानि Cloud भी होती है कभी कभी। हम अपने डाटा यानि सूचना को इंटरनेट के आकाश पर चढाने की बजाय उस बादल पर रख लेते हैं। ठीक वैसे ही, जैसे बादल पूरी दुनिया के लिए उपलब्ध नहीं होता, पूरी दुनिया को नहीं दिखता, पूरी दुनिया को पानी नहीं देता वैसे ही यह कम्प्यूटिंग वाला क्लाउड भी पूरी दुनिया को अपनी सर्विस नहीं देता। यह उन्हीं को अपनी सर्विस देता है, जो कि इससे जुडे हुए होते हैं।
अब इसे थोडा तकनीकी रूप से समझ लें। हमारे आजकल प्रयोग में लिए जाने वाले स्मार्टफोन, टैबलेट डिवाइस के अलावा ए टी एम जैसे मशीनें इसी तकनीक को इस्तेमाल करती हैं। इसमें होता यह है कि आपका डाटा एक दूर रखे हुए सर्वर पर सुरक्षित होता है, आपको केवल Front End दिखाई देता है जिस पर आप काम करते हैं, डाटा कहीं और सुरक्षित होता है (एटीएम में) कुछ डिवाइसेज में जैसे कि स्मार्टफोन और टैबलेट डिवाइसेज में डाटा पहले तो आपकी डिवाइस पर होता है, फिर उसका बैकअप उस डिवाइस से संबंधित सर्वर पर चला जाता है। जैसे कि मानलीजिए आप एंड्रॉइड फोन या टैबलेट का इस्तेमाल करते हैं तो यह गूगल के सर्वरों पर आपका डाटा सेव करता है, यदि आप विंडोज फोन प्रयोग करते हैं तो यह माइक्रोसॉफ्ट के सर्वरों पर आपका डाटा सुरक्षित करता है, ठीक इसी तरह अगर आप आइफोन के यूजर हैं, तो यह ऐप्पल के सर्वरों पर आपका डाटा सेव करता है।
इस तकनीक को क्लाउड कम्प्यूटिंग कहते हैं। इसके लाभों की अगर हम बात करें, तो पहला लाभ तो यह है कि इससे बार बार अपग्रेड या अपडेट करते समय सभी मशीनों को अपडेट या अपग्रेड करने की हमेशा जरूरत नहीं होती, आसानी रहती है।
दूसरा लाभ है, सुरक्षात्मक दष्टि से, यानि मान लीजिए यदि हर एटीएम पर अगर आपके बैंक खातों का हिसाब किताब रखा गया होता तो, आप एक मशीन से पैसा निकालकर खाता खाली कर देते, दूसरे एटीएम पर से फिर उतने ही पैसे निकाल लेते, क्योंकि डाटा का बैकअप तो हर एक सैकण्ड में लिया नहीं जा सकता, तो एक ही जानकारी हर मशीन पर उसी समय पहुंचाने के लिहाज से भी यह बेहतर है, इतना ही नहीं, यदि सभी एटीएम मशीनों पर आपके बैंक खातों की जानकारी सेव होती तो कभी भी कोई असामाजिक तत्व एक मशीन को अपने कब्जे में करके पूरी दुनिया में जितने भी लोगों के एटीएम कार्ड हैं, उनकी जानकारी हासिल करके किसी का भी खाता हैक कर सकता था, उसे ये भी आसानी से पता चल जाता कि किसके खाते मे ज्यादा रूपये हैं, जिसे वह लूटे। इसे हैक करना भी मुश्किल काम है, क्योंकि जिस मशीन पर यूजर काम करता है, उसमें कोई जानकारी तो है ही नहीं, तो हैक कहां से करेगा ? हैक करने के लिए तो पूरा सर्वर ही हैक करना पडे, जो कि बहुत ज्यादा मुश्किल काम होगा।
तीसरा लाभ है कम साधनों का प्रयोग होना, यानि कि खर्च में कटौती। इस तकनीक के जरिये जो रिमोट लोकेशन्स पर यानि दूर दराज के एरिया में जो मशीनें लगाई जाती हैं, या जो हमारे मोबाइल या टैबलेट डिवाइस हैं, या रेलवे के कम्प्यूटर्स हैं, उनमें स्थानीय स्टोरेज की आवश्यकता नहीं होती, जिससे कि खर्च भी बचता है, और प्रोसेसिंग को इकजाही यानि consolidate करने की जरूरत नहीं रहती।
कोशिश करूंगा कि अगली पोस्ट में इसका व्यावहारिक उपयोग, जो कि आपके लिए हो सकता है उसकी चर्चा करूं। अगली पोस्ट में क्लाउड तकनीक के जरिये प्रिंट केसे किया जाए, यह लिखने का प्रयास करूंगा।