22 फ़रवरी 2014

60 साल के बूढ़े या 60 साल के जवान ?

मुझे अक्सर दिल्ली मेट्रो की सबसे पुरानी लाइन यानि रेड लाइन से सफर करना होता है। अभी हाल यह है कि इस रूट पर ज्यादातर ट्रेनें 4 कोच की ही चलाई जा रहीं हैं। सुना है दो ट्रेनें 6 कोच की भी चलाई गई हैं। कल मेट्रो ट्रेन में रोहिणी वेस्ट मेट्रो (दिल्ली) से कश्मीरी गेट की तरफ जाते हुए, 6 कोच की ट्रेन के द्वितीय कोच यानि फीमेल कोच से बाद वाले कोच में केवल वरिष्ठ नागरिक वाली सीट के अलावा सारी सीटें भरी होने के कारण मैं वरिष्ठ नागरिकों के लिए आरक्षित सीट पर बैठ गया। नहीं.. नहीं... मेरा मक्सद यह बिल्कुल नहीं था कि मैं वहां बैठ जाऊं और वरिष्ठ नागरिक जाएं भाड़ में....। मैं पहले से committed था कि जैसे ही उस सीट के असली हकदार को मैं देखूंगा, उनके मांगने से भी पहले मैं यह सीट उनके सुपुर्द कर दूंगा, और विश्वास कीजिए मैंने बिल्कुल वैसी कोशिश भी की।

जैसे ही ट्रेन केशवपुरम स्टेशन से रवाना हुई, मैंने वहां से ट्रेन के उसी कोच में सवार एक वरिष्ठ नागरिक को देखा और due मुस्कुराहट के साथ खड़ा हुआ, सीट उन्हें ऑफर की। लेकिन आश्चर्य.... घोर आश्चर्य.... 60 साल के बूढ़े या 60 साल के जवान ? वाले च्यवनप्राश के उस विज्ञापन स्टाइल में उन सज्जन ने मुझे वह सीट नहीं छोड़ने दी, बल्कि उन्होंने मुझे कम से कम 3 से 4 बार वह सीट छोड़ने से न केवल मना कर दिया, बल्कि उन्होंने मेरे खड़े होने पर भी अपना ऐतराज दर्ज कराया।

अब कोई बुजुर्ग यदि खड़ा हो, और मैं सीट पर बैठा रह सकूं, यह मेरे संस्कारों में नहीं है। लिहाजा मैं उठा और जाकर एक कोने में यह सोचते हुए खड़ा हो गया। और देखिए, अब वे सज्जन वहां बैठ गए। थोड़ी देर में उनके साथ वाली सीट पर बैठी हुई लड़की ने ट्रेन से उतरने के लिए  सीट छोड़ दी, और उन्होंने मुझे फिर से वहीं बैठने को कहा, मैं बैठा तो उन्होंने मुझे जो कहा, वह उस सबसे बिल्कुल अलग था, जो कि बुजुर्गों के बारे में हमारी अक्सर धारणा रहती है।

उन्होंने खुद मुझसे बात शुरू की और कहा कि मैं ऑफिस जा रहा हूं, रोज़ जाता हूं, भीड़ में धक्के भी खाता हुआ जाता हूं, तो सीट मिलना या न मिलना ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि हम उस नियम की मूल भावना को समझें (मेरा स्वयं का भी यही मानना है)। उनका कहना था कि हम दफ्तर जाते हैं, हेयर डाई या (हेयर कलर) का इस्तेमाल करते हैं, यानि शरीर से और मन से हम खुद को बूढ़ा या लाचार नहीं मानते। अगर मुझे कोई बूढ़ा कहे, तो सुनकर तकलीफ होती है। मैं खुद को बूढ़ा मानने को तैयार नहीं, तो फिर सीट किस बात की  ? मैं मजबूर नहीं हूं, न उम्र से न किसी तरह लाचार हूं।  खैर.... तभी कश्मीरी गेट आ चुका था। मुझे उस ट्रेन से उतरना था, उतर भी गया, लेकिन मन में यही विचार दौड़ रहे थे कि अगर वहां मेरे पिता होते.... तो क्या मैं उनके लिए सीट नहीं छोड़ता ???