11 सितंबर 2012

असीम त्रिवेदी और मोनू पानवाला

भाई आज कई दिनों बाद मोनू से बात हो गई। मोनू ?? नहीं पहचाना... ? अरे वही अपना मोनू जिसकी बिजलीघर चौराहे पर पान की दुकान है, याद आया ?? छोडि़ये... !! बाद में याद आ जाएगा।
तो हम बता रहे थे कि मोनू पानवाले से बात हुई। मोनू से बात हो और राजनैतिक चर्चा न हो, यह कैसे संभव था ? वैसे भी देश की समग्र राजनैतिक चर्चा तो देश भर में फैली हुई चाय की थडि़यों, नाई की दुकानों, पनवाड़ी की दुकानों या फिर रेल के (अनारक्षित) डिब्बे में ही तो होती है। मोनू बेचारा अपनी आदत से मजबूर पूछ ही बैठा- भैया ये त्रिवेदी साहब ने क्‍या कर दिया, जो अंदर डाल दिया बेचारे को ? सो हम तो ठहरे मैंगो मैन यानि कि आम आदमी, इसलिए राजनैतिक चर्चा में भाग न लें, यह तो संभव ही नहीं था। तो भई हमें तुरन्त याद आया संजय दत्त अभिनीत फिल्‍म 'लगे रहो मुन्ना भाई' का वह डायॉलॉग याद आया- अरे जेल जाने से इज्जत कम होती क्या, बापू तो खुद अन्दर गएले थे।
मोनू ने फिर पूछा- लेकिन बेचारे कार्टूनिस्ट ने क्या कर दिया ऐसा अनोखा, जो उसे जेल में डाल दिया ? तो हमने समझाया कि देखो भाई यक्ष प्रश्न था कि- क: पन्था: ? जिसका उत्तर जो था वह था- स: पन्था:। अर्थात हमें वही करना चाहिए जो कि हमारे पूर्वजों, हमारे बड़े, श्रेष्ठ मानवों, महापुरूषों इत्यादि ने किया। इसी प्रकार तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्षा ने भी तो यही किया था पिछले दिनों। तृणमूल कांग्रेस बड़ा दल है भई।
अब तो जैसे मोनू ने भी हठ पकड़ ली हो हमारे तर्कों को काटने की, हमसे कुतर्क करने लगा- कहने लगा- अरे लेकिन लोग देश के प्रधानमंत्री तक के पुतले फूंकते हैं, उन्हें तो कोई जेल में नहीं डाल देता। मैंने उस बेचारे को समझाया कि देखो भाई, हर साल रावण का पुतला फूंकने से बुराइयों का अन्त तो कभी नहीं हुआ न ? पुतला फूंकने से तो पुनर्जीवन मिलता है। उसने पूछा कैसे? हमने समझाया- फर्ज करो अगर 10-15 साल के लिए रावण का पुतला फूंकना यदि बन्द कर दिया जाए तो हम लोग दशहरे को ही भूल जाएंगे। इस प्रकार रावण को पुतले से पुनर्जीवन मिलता है, हम पुतला फूंकते हैं तभी तो अगले साल फिर से दशहरा मना पाते हैं। लेकिन इस नादान कार्टूनिस्ट ने तो कार्टून बनाया है जो कि सरासर दण्डनीय अपराध है। अच्छा हुआ जो अंदर डाल दिया ससुरे को।
बस ऐसा कहने की देर थी कि उसका एक ग्राहक जो शायद निठल्ला था, काफी देर से हमारी चर्चा मुफ्त में ही सुनकर अपना ज्ञान बढ़ा रहा था, हमें कहने लगा- कसाब को तो फांसी दी नहीं जा रही, आम आदमी की आवाज को दबा रही है सरकार। अब मुझे तो आप जानते ही हैं.... मेरा तो नेचर ही कुछ ऐसा है, उस तुच्छ व्यक्ति की तुच्छ वाणी सुनकर मुझे उस पर दया आ गई और उसे दीक्षा के रूप में यह ज्ञान दिया कि अजमल कसाब भी जेल में ही तो है........। दामाद से भी ज्यादा खातिरदारी कर रही है सरकार...... । हमारी दयालु सरकार को बुरा मत कहो, बुराइयां ढूंढने निकलोगे तो हर जगह मिल जाएंगी। अरे असीम त्रिवेदी को भी तो जेल में ही बंद किया है... क्यूं टेंशन ले रहे हो।