30 दिसंबर 2012

कानून क्यों बनाए जाते हैं ?

दिल्‍ली सामूहिक दुष्कर्म की पीडि़ता छात्रा के निधन के बाद उसके अपराधियों को फांसी की सजा दिये जाने सहित अन्य कई प्रकार दण्डित किये जाने की मांग देश भर से उठाई जा रही है। मैं भी इसका हामी हूँ, लेकिन एक और बात भी है, जिस पर विचार करना मैं बेहद जरूरी समझता हूँ, शायद आप भी सहमत हों।
सवाल यह है कि उन्हें दण्डित करने के लिए चाहे अपराधियों को  उम्रकैद की सजा सुनाई जाए, चाहे फांसी की, या फिर कोई अन्‍य सजा; (ध्‍यान रहे मैं केवल इन्हीं अपराधियों की बात नहीं कर रहा हूँ, मैं सभी प्रकार के अपराधों की बात कर रहा हूँ चाहे उनकी गंभीरता कितनी भी क्यों न हो) सवाल यह है कि उस सजा से किसी को भी क्या फायदा होगा ? अब एक बार को इसी केस की बात करें तो किसी भी प्रकार की सजा से किसी को भी क्या कोई लाभ होगा ? मान लिया जाय कि फांसी ही दे दी जाय, तब ??
क्‍या उन अपराधियों को फांसी की सजा दिये जाने से उस लड़की को कोई फायदा पहुंचेगा? मेरे विचार से नहीं... क्‍योंकि वह तो जा चुकी। क्या उसके परिवार को कोई फायदा होगा ? मेरे विचार से उन्हें भी कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि जो अपूरणीय क्षति उसके परिवार को हुई है, उसे कभी भरा नहीं जा सकेगा। तो क्‍या समाज को कोई फायदा हो सकेगा ????? जी नहीं। माफ कीजिए, मेरा उत्तर है- ‘‘नहीं’’। क्योंकि वर्षों से चले आ रहे कानून के मुताबिक न जाने कितने ही लोग फांसी चढ़ चुके हैं। पिछले दिनों कसाब को भी फांसी दिये जाने की खबर थी, तो क्या आतंकवाद का खात्मा हुआ ?
हर रोज दफ्तर जल्दी पहुंचने की आपाधापी में न जाने कितनी ही बार हम लोग ट्रैफिक के किसी नियम की अनदेखी कर जाते हैं, कभी रेड लाइट क्रॉस करना, तो कभी हैल्मेट बिना यात्रा, कभी सीटबेल्ट, तो कभी ड्राइव करते समय मोबाइल पर बातचीत... वगैरह वगैरह। न जाने कितनी ही बार पुलिस वालों ने हमें रोका होगा, लेकिन उन पुलिस वालों की मंशा क्या रहती है ?? क्‍या कभी किसी पुलिस वाले ने आपको गलती करने से रोका ?
मेरा विश्वास है कि ऐसा कभी नहीं हुआ होगा। हुआ भी हो, तो अपवाद रूप में भले ही हुआ हो, परन्तु मुख्‍य धारा में ऐसा नहीं होता।
अक्सर होता यह है कि पुलिस वाले रेड लाइट के आसपास या सुनसान रोड़ पर कहीं छुपकर खड़े होते हैं ताकि आप गलती करें और वो आपको दण्डित कर सकें (चाहे वह कानूनी तौर पर या फिर अधिकांशत: रिश्वत के लिए)। मैं सीधे-सीधे कहना चह चाहता हूं कि पुलिस का मकसद यह नहीं होता कि लोग गलती न करें। उसका मक्सद यह होता है कि लोग गलती करें और पुलिस उनसे उगाही कर सके।
क्या नये कानून बन जाने से (जिनकी कि मांग की जा रही है) समाज, पुलिस और राजनेताओं की सोच बदलेगी, जिससे कि ऐसे हादसे न हों ????